Mahalaya amavsya 2025: महालया अमावस्या 2025 सही तिथि ,समय और विस्तृत जानकारी !
यह दिन पितृपक्ष (Pitru Paksha) का अंतिम दिन है, जिसे “सर्वपितृ अमावस्या” या “Pitru Moksha Amavasya” भी कहा जाता है।
अमावस्या तिथि प्रारंभ होती है 21 सितंबर को सुबह लगभग 4:47 बजे और समाप्त होती है 22 सितंबर को लगभग 5:53 बजे।
*महालया अमावस्या 21 सितंबर, 2025 (रविवार) को है।
*पितृपक्ष / महालया अमावस्या :
महालया अमावस्या हिंदू धर्म में पितृपक्ष का समापन है। इस अवधि में हम अपने पूर्वजों (पितरों) की आत्माओं के लिए श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान आदि कर्म करते हैं ताकि उनकी आत्मा को शांति मिले, उनके ऋण समाप्त हों और हम पर उनका आशीर्वाद बना रहे।
**कुछ प्रमुख मान्यताएँ व कारण:
यदि किसी पूर्वज की मृत्यु-तिथि ज्ञात न हो, तो इस अमावस्या पर तर्पण-श्राद्ध किया जाता है ताकि उन आत्माओं को भी श्रद्धा मिल सके।
परिवार में पितृऋण (Pitru Rina) कहा जाता है — जीवन में पूर्वजों का सम्मान और उनके प्रति कर्तव्य निभाना , इस दिन उससे मुक्ति का योग होता है।
इस दिन दान, विशेष कर ब्राह्मणों को भोजन-दान, वस्त्र दान, चारा-दान आदि करना शुभ माना जाता है।
*पूजा विधि / तर्पण-श्राद्ध विधि:
नीचे चरणबद्ध पूजा विधि दी जा रही है जिसे सामान्यतः अपनाया जाता है। स्थान, परंपरा और संसाधनों के अनुसार बदल सकती है।
1. स्नान और शुद्धिकरण:
सुबह जल्दी उठें। शुद्ध, स्वच्छ कपड़े पहनें। दीर्घ शुद्ध स्नान करें — पानी से मंदिर-नदी-तालाब आदि जल से या यदि संभव हो स्नान करें।
2. संकल्प:
पूजा शुरू करने से पूर्व संकल्प लें कि आप अपने पूर्वजों की आत्माओं की शांति के लिए यह श्राद्ध / तर्पण कर रहे हैं। अपने नाम, पूर्वजों के नाम या ‘पितरों’ का समूह स्मरण कर संकल्प करें।
3. विधान और स्थान:
यदि संभव हो तो किसी पवित्र जलाशय (नदी, सरोवर) के किनारे जाकर तर्पण करें। नहीं तो घर पर पूर्वजों के चित्र या पूर्वजों के स्मरण स्थान पर पूजा-थाल तैयार करें।
4. सामग्री:
*जल (जलाशय का हो तो उत्तम)
*तिल (काले तिल विशेष रूप से)
*अक्षत (अक्षत चावल)
*यव, जौ आदि बीज या अनाज जो तर्पण में इस्तेमाल होते हों
*पिंड (गोल आकार के चावल-अनाज-तिल से बने पकवान)
पूजा-दीप, अगरबत्ती, फूल, शुद्ध वस्त्र, भोजन (शुद्ध, शाकाहारी) प्रसाद रूप में
5. तर्पण कर्म:
हाथों में तिल-बीज लेकर जल दान करें, हाथों से जल को उँगलियों के बीच से निकालते हुए (आंजलि बनाकर) पूर्वजों को स्मरण कर “पितृभ्यो नमस्तुभ्यं … जल ग्रहण आत्मा सुखाय” आदि मंत्रों के साथ तर्पण करें।
पिंडदान करें — पिंड तैयार करें और पूर्वजों के प्रति समर्पित करके वह अन्न-पानी या उपयुक्त स्थान पर या किसी तीर्थ स्थान में स्थापित करें।
6. भोजन-दान / दान
*ब्राह्मणों को भोजन कराएँ, उन्हें वस्त्र दें और आवश्यक दान करें। जरूरतमंद लोगों को दान देना बहुत शुभ माना जाता है।
7. श्रद्धा भाव और मानसिक शांति:
*अंत में पूर्वजों से क्षमा याचना अवश्य करें जाने अनजाने में किसी भी भूल के लिए क्षमा मांगे!
*उनको स्मरण करते समय पूरी आस्था, संयम और आत्म-समर्पण का भाव हो।
*नीचे कुछ उपयुक्त उपाय और सावधानियाँ हैं जिन्हें सावधानी पूर्वक बरतें:
*प्रातःकाल जल्दी उठना, स्वच्छ स्नान करना!
आलस्य) न करें!
*शुद्ध, शाकाहारी भोजन करना!
*मांसाहार, मद्य, तर्क-विवाद, अशुद्ध वातावरण नहीं रखना चाहिए!
*पूजा थाल, स्थान, कपड़े आदि स्वच्छ रखना!
*क्रोध, झगड़ा, अपशब्दों का प्रयोग न हो!
*दान-पुण्य, गरीबों, ब्राह्मणों की सेवा करना!
*नकारात्मक विचार, आत्म-द्वेष, पितृ दोष को झुठलाना नहीं चाहिए!
*तिल, अक्षत, जल से तर्पण-श्राद्ध कर्म पूरा करना पूजा-क्रिया बीच में अधूरी छोड़ना न हो!
**ज्योतिषीय प्रभाव और लाभ:
इस दिन किए गए तर्पण और श्राद्ध कर्म से पितृ आत्माओं की शांति होती है और उन्हें मोक्ष की स्थिति प्राप्त होती है। परिवार में मन का सहज प्रभाव उत्पन्न होता है — पूर्वजों के आशीर्वाद से लाभ, परिवार में सौहार्द्र, सुख-शांति, पूर्वजों की कृपा मिलती है।यदि जीवन में कोई बाधाएँ, अनजान कारणों से परेशानियाँ हों, तो इस दिन विशेष उपाय करने से समस्या हल होती है।धन, स्वास्थ्य, और मानसिक स्थिति में सुधार की संभावना होती है क्योंकि पुरानी आत्मिक ऋण (pitra-rina) समाप्त होती है।
*विशेष उपाय:
*दान: यदि संभव हो, तिल, भोजन, कौड़ी-धन आदि का दान पूर्वजों के नाम से करना चाहिए।
*प्रदक्षिणा और दीपदान: जलाशय या मंदिर के चारों ओर दीप जलावें, प्रातः सूर्य दर्शन करें।
*वचन दर्शन: किसी धार्मिक ग्रंथ का श्रवण या पाठ करें जो पितृ-श्राद्ध, मोक्ष आदि विषयों से संबंधित हो।
*मंत्र जप: “ॐ पितृभ्यो नमः” आदि मंत्रों का जाप मन से किया जाए।
महालया अमावस्या न सिर्फ पूर्वजों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने का पवित्र अवसर है, बल्कि आत्मा की शुद्धि और जीवन में संतुलन, आस्था और आशीर्वादों की प्राप्ति का दिन है। इस दिन की पूजा-विधि और उपाय यदि लगन और श्रद्धा पूर्वक किए जाएँ, तो पूर्वजों की शांति तो प्राप्त होती ही है , साथ ही हमारे जीवन
पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। हर बाधा दूर होती है, व्यवसाय में तरक्की होती है , घर का वातावरण सुखद होता है!